नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजाई
एक ऐसी लड़की जिसने लडकियों की शिक्षा के लिए सिने में गोली खायी, वैसे तो ये लड़की रहनेवाली पाकिस्तान की, कहते है कीचड़ में भी कमल खिलता है. बस इस लड़की के साथ भी यही हुआ. इस लड़की का नाम मलाला युसुफजाई है मलाला का जन्म १२ जुलाई १९९७ को हुआ उसकी पैदाइश पाकिस्तान के खैबर-पख्तनख्वा प्रान्त के स्वात जिले में स्थित मिंगोरा शहर की है.
मलाला तेरा साल की उम्र में ही तहरीक ए तालिबान सरकार के खिलाफ ब्लॉग के जरिए लोगो के दिलो में राज करने लगी और उनके लिए एक सुपर स्टार से कम नहीं थी. मलाला बच्चो के अधिकार प्राप्त कर हेतु सरकार से लडती रही लेकिन वहाके सरकार के ठेकेदारोको ए हजम नहीं हुआ और आखिर १४ साल के उम्र में उगरवादियो के गोली की शिकार हो गयी पर कह्ते है "जाको राके साइया मार सके ना कोंई". मलाला ने ब्लॉग और मीडिया में तालिबान की ज्यादतियों के बारे में जब से लिखना शुरू किया तब से उसे कई बार धमकियां मिलीं।
मलाला ने तालिबान के कट्टर फरमानों से जुड़ी दर्दनाक दास्तानों को महज ११ साल की उम्र में अपनी कलम के जरिए लोगों के सामने लाने का काम किया था। मलाला उन पीड़ित लड़कियों में से है जो तालिबान के फरमान के कारण लंबे समय तक स्कूल जाने से वंचित रहीं। तीन साल पहले स्वात घाटी में तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी थी। लड़कियों को टीवी कार्यक्रम देखने की भी मनाही थी। स्वात घाटी में तालिबानियों का कब्जा था और स्कूल से लेकर कई चीजों पर पाबंदी थी। मलाला भी इसकी शिकार हुई। लेकिन अपनी डायरी के माध्यम से मलाला ने क्षेत्र के लोगों को न सिर्फ जागरुक किया बल्कि तालिबान के खिलाफ खड़ा भी किया।
तालिबान ने साल २००७ में स्वात पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था। और इसे लगातार कब्जे में रखा। तालिबानियों ने लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए थे। कार में म्यूजिक से लेकर सड़क पर खेलने तक पर पाबंदी लगा दी गई थी. पाकिस्तान की ‘न्यू नेशनल पीस प्राइज’ हासिल करने वाली 14 वर्षीय मलाला यूसुफजई ने तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चला रखा है। तालिबान आतंकी इसी बात से नाराज होकर उसे अपनी हिट लिस्ट में ले चुके थे। संगठन के प्रवक्ता के अनुसार,‘यह महिला पश्चिमी देशों के हितों के लिए काम कर रही हैं। इन्होंने स्वात इलाके में धर्मनिरपेक्ष सरकार का समर्थन किया था। इसी वजह से यह हमारी हिट लिस्ट में हैं।
अक्टूबर 2012 में, स्कूल से लौटते वक्त उस पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें वे बुरी तरह घायल हो गई. और उसे अस्पताल में जिंदगी और मौत से जुजना पड़ा. शायद उन लोगो की दुआएं उसके साथ थी. हमें इससे यही सबक लेना होगा के सच्चाई की कभी हार नहीं होती।
मलाला तेरा साल की उम्र में ही तहरीक ए तालिबान सरकार के खिलाफ ब्लॉग के जरिए लोगो के दिलो में राज करने लगी और उनके लिए एक सुपर स्टार से कम नहीं थी. मलाला बच्चो के अधिकार प्राप्त कर हेतु सरकार से लडती रही लेकिन वहाके सरकार के ठेकेदारोको ए हजम नहीं हुआ और आखिर १४ साल के उम्र में उगरवादियो के गोली की शिकार हो गयी पर कह्ते है "जाको राके साइया मार सके ना कोंई". मलाला ने ब्लॉग और मीडिया में तालिबान की ज्यादतियों के बारे में जब से लिखना शुरू किया तब से उसे कई बार धमकियां मिलीं।
मलाला ने तालिबान के कट्टर फरमानों से जुड़ी दर्दनाक दास्तानों को महज ११ साल की उम्र में अपनी कलम के जरिए लोगों के सामने लाने का काम किया था। मलाला उन पीड़ित लड़कियों में से है जो तालिबान के फरमान के कारण लंबे समय तक स्कूल जाने से वंचित रहीं। तीन साल पहले स्वात घाटी में तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगा दी थी। लड़कियों को टीवी कार्यक्रम देखने की भी मनाही थी। स्वात घाटी में तालिबानियों का कब्जा था और स्कूल से लेकर कई चीजों पर पाबंदी थी। मलाला भी इसकी शिकार हुई। लेकिन अपनी डायरी के माध्यम से मलाला ने क्षेत्र के लोगों को न सिर्फ जागरुक किया बल्कि तालिबान के खिलाफ खड़ा भी किया।
तालिबान ने साल २००७ में स्वात पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था। और इसे लगातार कब्जे में रखा। तालिबानियों ने लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए थे। कार में म्यूजिक से लेकर सड़क पर खेलने तक पर पाबंदी लगा दी गई थी. पाकिस्तान की ‘न्यू नेशनल पीस प्राइज’ हासिल करने वाली 14 वर्षीय मलाला यूसुफजई ने तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चला रखा है। तालिबान आतंकी इसी बात से नाराज होकर उसे अपनी हिट लिस्ट में ले चुके थे। संगठन के प्रवक्ता के अनुसार,‘यह महिला पश्चिमी देशों के हितों के लिए काम कर रही हैं। इन्होंने स्वात इलाके में धर्मनिरपेक्ष सरकार का समर्थन किया था। इसी वजह से यह हमारी हिट लिस्ट में हैं।
अक्टूबर 2012 में, स्कूल से लौटते वक्त उस पर आतंकियों ने हमला किया जिसमें वे बुरी तरह घायल हो गई. और उसे अस्पताल में जिंदगी और मौत से जुजना पड़ा. शायद उन लोगो की दुआएं उसके साथ थी. हमें इससे यही सबक लेना होगा के सच्चाई की कभी हार नहीं होती।
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