Monday, 19 March 2018

India's first Women's School Teacher- Savitribai Jyotirao Phule

👩सावित्रीबाई (माँ ) ज्योतिराव फुले👩

सावित्रीबाई (माँ) ज्योतिराव फुले का जन्म महाराष्ट्र के सातारा जिले में खंडाला तालुका में सायगाव में ०३ जानेवारी १८३१ को हुआ. वह भारत की पहली महिला शिक्षिका थी और उन्होंने अपने  पति श्री ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ उन्होंने स्त्रियों के मौलिक अधिकार और सम्मान के लिए बहोत बड़ा संघर्ष किया. इस दौरान उन्हें काफी दिक्कतों का तथा अपमान का सामना करना पड़ा. 
       १८५२ में अछूत तथा निराधार बालिकाओ के लिए विद्यालय की स्थापना की, उनका कार्य जैसे अनाथ बच्चो को सहारा देना, विधवा महिलाओं का फिरसे विवाह होने के पक्ष में थी. उन्होंने स्त्री मुक्ति आन्दोलन का बड़ा जिम्मा उठाया था. सावित्री माँ का १५० साल पुराना कार्य सर्वस्पर्शी तथा गौरव पूर्ण है. १९ के दशक में चारो तरफ अज्ञान तथा अनाचार , विषमता और धर्म रुधियोका साम्राज्य था.पुरुष प्रधान समाजवादी व्यवस्था थी, स्त्री का जन्म अशुभ माना जाता था. स्त्री और पुरुष एक ही है तथा स्त्री का मन भी होता है, उसके पास दिल भी है उसके कुछ अपने विचार है इसे समाजवादियों द्वारा नाकारा गया. स्त्री ये अबला है, वो गुलाम है तथा दुसरो के आश्रय पलने वाली, एक चीज है ऐसे माना  जाता था. 
          हिन्दू धर्म  के इतिहास में जीतनी अवहेलना, अपमान, शोषण इन धर्म के ठेकेदारोने की है के इस दुनिया में कही भी नहीं हुआ होगा. स्त्री को विवश होना पड़ता था आत्महत्या के लिए, मरने के लिए और जो नहीं मरती थी उन्हें मार दिया जाता था और किसीको पता भी नहीं चलता था. सावित्रीमाँ के ज़माने में बालविवाह बड़े जोरो शोरो से किया जाता था क्यों की धर्म के ठेकेदारोने ऐसा जल बिछाया था के स्त्री को बचपन से ही तकलीफ, दर्द, छल की शुरुवात होती थी क्यों की सिर्फ आठ साल के बच्ची के साथ २५ से ३० साल तक के मर्द की शादी करवा दी जाती थी. और फिर क्या दर्द...दर्द....दर्द....घर में अगर कुछ भी अशुभ होता तो सारा स्त्री के माथे मार  दिया जाता. सास, ससुर, पति, ननद सब उसीको तकलीफ पोहचाने के लिए तयार थे. अगर शादी होने के बाद पति साल दो साल में गुजर जाये तो उसका जीवन किसी नरक से कम नहीं था. 
         उस ज़माने में विधवा स्त्रियोका जीवन में कोई महत्व था ही नहीं बस वो एक काम करनेवाली मशीन ही थी और कुछ नहीं उसे मारना, पीटना उसके साथ अत्याचार करना गैर नहीं हुआ करता था. उसके बाद सबसे भयानक और जानलेवा प्रथा थी "सती" जाने वाली, इसमें अगर किसी औरत का मर्द गुजर गया तो उस औरत को उसके पति के चिता के साथ दूसरी चिता पे बिठाकर जिन्दा जलाया जाता था जब इस चिता को जलाया जाता तो वो औरत उस चिता पर चिल्लाने की कोशिश करती भागने की कोशिश करती  किसीको दया नहीं आती थी जब वो चिल्लाने लगती तो ढोल नगाडो तथा जोर जोर भजन से उसकी आवाज़ को दबाया जाता जब वो भागने लगती तो ये धर्म के ठेकेदार चिता के चारो तरफ खड़े रहते और बंबू से उसे चिता पे धकेला जाता जैसे किसी पापड़ को भूनते है वैसे ही उस स्त्री को भुना जाता और जलाया जाता जब तक को उसकी सास बंद न हो जाये.
सती प्रथा
         सावित्री माँ ने इन परम्पराओ के खिलाफ आवाज उठाया और पहले तो स्त्री को साक्षर करने की ठान ली उन्होंने भारत का पहला महिलाओ के लिए स्कूल खोला जहा की वो पहली शिक्षिका थी. उन्होंने महिलाओं को पढाना शुरू किया जो इन धर्म के ठेकेदारों को पसंद नहीं आया और छल कपट करने की बहोत कोशिश की. सावित्री माँ ने गरीब, महिला , बच्चे और दलित इन्हें सहारा दिया उन्हें रहने के लिए छत दिया पढाया और काबिल बनाया इसके लिए उन्हें समाज ठेकेदारों के और से कीचड़ के गोलों से मारा गया उन्हें सताया गया लेकिन वो पीछे नहीं हटी और इसी कारन वश उनका नाम आज भी इतिहास के सुनहरे पन्नो में लिखा गया है. 

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